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आज से छठ महापर्व का सुभारम्भ,जानिए पूजा से जुड़ी पौराणिक कथाए एवं पूजन विधि

छठ पूजा हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है, नवरात्र, दूर्गा पूजा की तरह छठ पर्व भी बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। कार्तिक महीने में मनाए जाने वाले छठ पूजा त्योहार का बेहद महत्व है। छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्यदेव की पूजा की जाती है और यह बहुत ही कठिन पूजा मानी जाती है। छठ को सूर्य देवता की बहन माना जाता है। छठ पर्व में सूर्योपासना करने से छठ माई प्रसन्न होती हैं और घर परिवार में सुख शांति व धन-धान्य से संपन्न करती हैं।
छठ महापर्व मनाने की पौराणिक बातें
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी के सूर्यास्त और सप्तमी के सूर्योदय के मध्य वेदमाता गायत्री का जन्म हुआ था। प्रकृति के षष्ठ अंश से उत्पन्न षष्ठी माता बालकों की रक्षा करने वाले विष्णु भगवान द्वारा रची माया हैं। बालक के जन्म के छठे दिन छठी मैया की पूजा-अर्चना की जाती है, जिससे बच्चे के ग्रह-गोचर शांत हो जाएं और जिंदगी में किसी प्रकार का कष्ट नहीं आए। इस मान्यता के तहत ही इस तिथि को षष्ठी देवी का व्रत होने लगा।
भारत में कई ऐसे पर्व हैं, जिन्हें काफी कठिन माना जाता है और इन्हीं में से एक है  महापर्व छठ, जिसे रामायण और महाभारत काल से ही मनाने की परंपरा रही है।सूर्य उपासना का महान पर्व छठ की आज से शुरुआत हो गई है। इस चार दिवसीय त्योहार की शुरुआत नहाय-खाय की परम्परा से होती है। यह त्योहार पूरी तरह से श्रद्धा और शुद्धता का पर्व है। इस व्रत को महिलाओं के साथ ही पुरुष भी रखते हैं। चार दिनों तक चलने वाले लोकआस्था के इस महापर्व में व्रती को लगभग तीन दिन का व्रत रखना होता है जिसमें से दो दिन तो निर्जला व्रत रखा जाता है। एक कथा के अनुसार, महाभारत काल में जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत किया। इससे उनकी मनोकामनाएं पूर्ण हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया। एक कथा के अनुसार, महाभारत काल में जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत किया। इससे उनकी मनोकामनाएं पूर्ण हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया। कहते हैं कि छठ पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी।सीता चरण में कभी मां सीता ने छह दिनों तक रह कर छठ पूजा की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार 14 वर्ष वनवास के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ करने का फैसला लिया। इसके लिए मुग्दल ऋषि को आमंत्रण दिया गया था, लेकिन मुग्दल ऋषि ने भगवान राम एवं सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया। ऋषि की आज्ञा पर भगवान राम एवं सीता स्वयं यहां आए और उन्हें इसकी पूजा के बारे में बताया गया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता को गंगा छिड़क कर पवित्र किया एवं कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। यहीं रह कर माता सीता ने छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।

चार दिनों तक चलती है छठ पूजा



छठ पूजा चार दिनों तक चलती है और इसे काफी कठिन और विधि-विधान वाला पर्व माना जाता है। इसके लिए पूजा से पहले काफी साफ-सफाई की जाती है। घर के आस-पास भी कहीं गंदगी नहीं रहने दी जाती। 

नहाय-खाय



पूजा के पहले दिन नहाय खाय होता है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को होती है। मान्यता है कि इस दिन व्रती स्नान कर नए वस्त्र धारण करते हैं और शाकाहारी भोजन करते हैं। इस दिन लौकी-भात (लौकी की सब्जी और चावल, दाल अादि) की परंपरा है। पूजा के दौरान बाजार में लौकी की कीमत भी काफी बढ़ जाती है। नहाय खाय के दिन व्रती के भोजन करने के पश्चात ही घर के अन्य सदस्य भोजन करते हैं।

खरना



छठ पूजा के तहत नहाय-खाय के दूसरे दिन खरना होता है। कार्तिक शुक्ल पंचमी को पूरे दिन व्रत रखा जाता है और शाम को व्रती भोजन ग्रहण करते हैं। इसे खरना कहा जाता है। इस दिन अन्न व जल ग्रहण किए बिना उपवास किया जाता है। शाम को चावल और गुड़ से खीर बनाकर खायी जाती है और लोगों के बीच इसका प्रसाद भी वितरित किया जाता है। इसमें  नमक व चीनी का इस्तेमाल नहीं किया जाता। खीर बनाने में भी गुड़ का इस्तेमाल होता है। 

नदी घाटों पर देते हैं अर्घ्य


ठेकुआ और अन्य प्रसाद सामग्री तैयार होने के बाद फल, गन्ना और अन्य सामग्री बांस की टोकरी में सजाये जाते हैं। बांस की टोकरी को दउरा भी कहा जाता है। घर में इसकी पूजा कर सभी व्रती सूर्य को अर्घ्य देने के लिये तालाब या नदी घाट पर जाते हैं। पहले दिन स्नान के बाद डूबते सूर्य की आराधना की जाती है और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है।
अगले दिन यानि सप्तमी को सुबह उगते हुए सूर्य की उपासना कर अर्घ्य दी जाती है। इस दौरान नदी घाट पर हवन की प्रक्रिया भी पूरी की जाती है और पूजा के बाद सभी के बीच प्रसाद बांटा जाता है।  

तिथि व मुहूर्त 2018


छठ पूजा 2018 : 13 नवंबर
छठ पूजा के दिन सूर्योदय : 6.41
छठ पूजा के दिन सूर्यास्त : 05.28
षष्ठी तिथि का आरंभ : 1.50 (13 नवंबर 2018)
षष्ठी तिथि की समाप्ति : 04.22 (14 नवंबर 2018)