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मध्यप्रदेश में कांग्रेस मुद्दे से भटकी तो फिर रहना पड़ सकता है सत्ता से दूर



आगामी लोकसभा चुनाव 2019 की दृष्टि से मध्य प्रदेश का विधानसभा चुनाव बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए विशेष है लोकसभा चुनाव के  कुछ ही महीने शेष  रह गए इसीलिए सभी राजनीतिक दल लोकसभा की तैयारी में अपनी अपनी गोट बिछाने व चुनाव पूर्व रिहर्सल के तौर पर विभिन्न प्रयोग कर रहे हैं 230 विधानसभा सीट वाली मध्य प्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस अपने अपने दिग्गज नेताओं व स्टार प्रचारकों द्वारा एक दूसरे को कड़ी टक्कर देने में लगे पिछले 15 वर्षों से मध्यप्रदेश में शिवराज के नेतृत्व में बीजेपी सत्ता में बनी हुई देखना यह है कि क्या कांग्रेस की रणनीति इस बार 15 सालों से सत्ता में काबिज बीजेपी के विकल्प के रूप में जनता पर अपना विश्वास बना पाएगी इस समय पूरे प्रदेश में एक ही चर्चा है कि सरकार किसकी बनेगी क्योंकि जनता का कोई रुख किसी भी पार्टी की तरफ नही दिख रहा क्योंकि इस बार किसी की भी लहर नही है।
चुनाव के कुछ महीने पहले जब कांग्रेस ने अपने अनुभवी नेता कमलनाथ को प्रदेश की कमान सौंपी थी तो कांग्रेस को लग रहा था वह सब कुछ जल्द ही ठीक कर लेंगे और शिवराज सिंह चौहान को घेरने में कामयाब रहेंगे लेकिन इसकी वजह कांग्रेस पार्टी अपने ही नेताओं के विवादित बयानों में उलझ कर रह गई
कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में आर एस एस पर प्रतिबंध लगाने की बात कही थी इस पर पूरे प्रदेश में खूब बवाल हुआ य बवाल थमा भी नहीं था की कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ का मुस्लिम नेताओं के सामने सरकार आने पर आर एस एस से निपट लेने वाला वीडियो वायरल हो गया इसके बाद मुस्लिम वह महिलाओं के टिकट को लेकर कमल नाथ की टिप्पणी पार्टी को भारी पड़ सकती है
कुछ महीने पहले जब कमलनाथ को प्रदेश की कमान सौंपी गई थी तो ऐसा लग रहा था की कमलनाथ पार्टी की गुटबाजी खत्म कर उसमें नया जोश भर देंगे शुरुआती दौर में ऐसा लगा भी लेकिन पार्टी शिवराज को घेरने की जगह अपने नेताओ के विवादित बयान व् टिकट वितरण के मतभेदों की सफाई देने उलझ कर रह गई .
सूबे से शिवराज सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए कांग्रेस के दिग्गजों ने प्रचार का एक्शन प्लान तैयार किया है. प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ पूरे प्रदेश की जिम्मेदारी के साथ  नजरें जमाएं हैं. कमलनाथ की 100 रैलियों के प्लान के मुताबिक हर दिन से सभाएं कर रहें हैं. पार्टी के सबसे वरिष्ठ और अनुभवी होने के नाते साख भी उनकी ही दांव पर है. वहीं दिग्विजय सिंह डेमेज कंट्रोल में जुटे हैंरूठों को मना रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय का कोई प्लान सभा लेने का नहीं हैवे सिर्फ गुनाभोपाल या जहां उम्मीदवार बुलाते हैं वहां जा रहे हैं लेकिन कोई पब्लिक मीटिंग नहीं ले रहे हैं. मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में एक ज्योतिरादित्य सिंधिया का पूरा फोकस चंबल की 56 सीटें हैं और मालवा-बुंदेलखंड की उन सीटों पर सभा लेने जा रहे हैं जहां उनके समर्थकों को टिकिट मिली हैं. इसी तरह कद्दावर नेता के पुत्र अजय सिंह विंध्य में मैदान संभाले हुए हैं. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरूण यादव पूरी ताकत बुदनी में शिवराज को घेरने में लगा रहे हैं. इसी तरह पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और केन्द्रीय मंत्री रहे सुरेश पचौरी भी भोजपुर विधानसभा सीट से मैदान में हैं. पार्टी आलाकमान राहुल गांधी की करीब 20 सभाओं का प्लान है.
2013 के विधान सभा चुनाव के ठीक पहले बीजेपी ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था और देश भर में मोदी  का जादू सर चढकर बोल रहा था  और प्रदेश में शिवराज का जादू भी कम नहीं हुआ था. दूसरी ओर यूपीए की नाकामी और प्रदेश में कांग्रेस की गुटबाजी ने बीजेपी को तीसरा मौका दिया था. शिवराज के नेतृत्व में बीजेपी को 172 सीटें मिलीं  थीं.
हालांकि कमलनाथ ने अपने नेताओ से आर एस एस और धार्मिक बातो पर चर्चा ना करने को कहा है और राहुल गाँधी भी ताबड़ -तोड़ रैलियां कर रहे है .
पंद्रह साल से बीजेपी सत्ता में है और जनता बदलाव का मन बनाये है, यदि