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आज अक्षय अथवा आंवला नवमी जाने महत्व , कथा एवं पूजा विधि

भारतवर्ष त्योहारों का देश है कार्तिक माह में हिंदुओं के बहुत से त्योहार मनाए जाते हैं जिसकी शुरुआत दीपावली से हो जाती है इसी क्रम में कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को अक्षय नवमी अथवा आंवला नवमी नामक पर्व मनाया जाता है .यह व्रत उत्तरी भारत में उत्साह के साथ मनाया जाता है इस व्रत को करने पर अक्षय फल की प्राप्ति होती.
 मान्यताओं के अनुसार अक्षय नवमी के दिन किया गया दान  पुण्य कभी समाप्त नहीं होता इस दिन किया गया शुभ कार्य भक्ति, सेवा, पूजन पाठ, दान आदि जो भी किया जाता है उसका पुण्य कई जन्मों तक समाप्त नहीं होता.
इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे भोजन को पकाते हैं,और परिवार के सभी सदस्य एक साथ बैठकर इसी आंवले के पेड़ के नीचे भोजन करते हैं। महिलाएं इस व्रत को अपनी संतान का सुख प्राप्त करने और उनकी मंगलकामना के लिए करती हैं।
अक्षय अथवा आंवला नवमी का महत्व -
आंवला के सानिध्य में भोजन और दान-पुण्य का अनंत फल प्राप्त होता है.
अक्षय नवमी को आंवला पूजन से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और परिवारिक-शांति, उत्तम-आयु एवं संतान-सुख की वृद्धि होती है.
अक्षय नवमी को ही भगवान श्रीकृष्ण ने कंस वध से पूर्व तीन वनों की परिक्रमा की थी, इसीलिए आज भी श्रद्धालु अक्षय नवमी पर... अत्याचार के विरुद्ध न्याय की विजय के लिए मथुरा-वृन्दावन की परिक्रमा और श्रीकृष्ण मंदिर में पूजा-दर्शन करते हैं.
इस अवसर पर आंवले का पौधा लगाने से ज्यों-ज्यों आंवला बढ़ता है त्यों-त्यों सुख, समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है.
तो आइए जानते हैं आंवला नवमी व्रत कथा और पूजा विधि के बारे में।
आंवला नवमी व्रत कथा
आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा और इसके नीचे भोजन करने की परंपरा की शुरुआत करने वाली माता लक्ष्मी को माना जाता हैं। इस संदर्भ में एक कथा हैं,कि एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण करने आयी। रास्ते में उन्हे भगवान विष्णु और शिव जी की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई लक्ष्मी मां ने विचार किया कि एक साथ विष्णु एवं शिव की पूजा कैसे हो सकती हैं। तभ उन्हे ख्याल आया कि तुलसी और बेल का गुणएक साथ आंवले के पेड़ में ही पाया जाता हैं। तुसली भगवान विष्णु को प्रिय होती हैं,और बेल पत्र भगवान शिव को।
आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक चिन्ह मानकर मां लक्ष्मी ने आंवले के पेड़ की पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी मां ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन पकाया और विष्णु और शिव को भोजन करवाया। इसके बाद स्वयं भोजन किया। जिस दिन यह घटना हुई थी। उस दिन कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि थी। उसी समय से यह परंपरा चली रही हैं।
आंवला नवमी की पूजा विधि

 इस दिन आंवला के पेड़ की पूजा होती है और उसी के पास भोजन किया जाता है .पूरा परिवार ऐसी जगह जाने  की योजना बनाता है जहां आंवले का पेड़ होता है. यदि पूरा परिवार नहीं जाता है तब भी महिलाएं इस दिन एकत्र होकर बड़ी धूमधाम से मनाती  हैं .आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है .उसकी परिक्रमा का विशेष महत्व है आंवले के वृक्ष में दूध चढ़ाया जाता है .विधि- विधान से  पूजा की जाती है .श्रृंगार का सामान कपड़े किसी गरीब अथवा ब्राह्मण को दान किया जाता है. गरीबों को अनाज अपनी क्षमता अनुसार दान किया जाता है सफेद या लाल मूली के धागे शेष की परिक्रमा करते हैं और महिलाएं बिंदी चूड़ी मेहंदी सिंदूर आदि उसने को आंवले के पेड़ पर चढ़ आती हैं इसके बाद इस सामान को सुहागन टीका लगा कर एक दूसरे को देती.