
भारतीय हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार सावन माह में भगवान शिव ध्यान मुद्रा से उठकर अपने भक्तो पर कृपा करने ब्रह्मांड पर भ्रमण करने निकलते है। सावन का महीना पूरी तरह से भगवान शिव को समर्पित रहता है। इस माह में विधि पूर्वक शिवजी की आराधना करने से, मनुष्य को शुभ फल की प्राप्ति होती है। सोमवार के दिन पड़ने वाले वाले प्रदोष व्रत को सोम प्रदोष व्रत कहते हैं. इस बार सावन का प्रदोष व्रत, सावन के दूसरे सोमवार यानी 29 जुलाई को है. कृष्ण पक्ष का प्रदोष विशेष महत्व रखता है। सोमवार के साथ प्रदोष व्रत होने से सावन का दूसरा सोमवार शिव भक्तों के लिए शिव की खास कृपा लेकर आया है। कहते हैं इस शुभ संयोग में शिवजी का अभिषेक सभी मनोरथों खास तौर पर संतान प्राप्ति ,धन धान्य , रोगों से मुक्ति तथा दीर्घ आयु प्रदान करने वाला है।
इसमें भगवान शिव के 'रुद्राभिषेक' का विशेष महत्त्व है। इसलिए इस माह में, खासतौर पर सोमवार के दिन 'रुद्राभिषेक' करने से शिव भगवान की कृपा प्राप्त की जा सकती है। अभिषेक कराने के बाद बेलपत्र, शमीपत्र, कुशा तथा दूब आदि से शिवजी को प्रसन्न करते हैं और अंत में भांग, धतूरा तथा श्रीफल भोलेनाथ को भोग के रूप में समर्पित किया जाता है।

प्रदोष व्रत का महत्व एवं पूजा विधि -
प्रदोष काल उस समय कहते है जब सूर्यास्त हो गया हो, लेकिन रात अभी नहीं आई हो. यानी सूर्यास्त के बाद और रात होने से पहले का समय , उसे ही प्रदोष काल कहा जाता है. इस समयावधि पर की गयी पूजा से शिव प्रसन्न हो सभी मनोकामनाए पूर्ण करते है। सोम प्रदोष व्रत की पूजा शाम 4:30 बजे से लेकर शाम 7:00 बजे के बीच की जाती है।
सावन के सोम प्रदोष को शिव भक्त को व्रत रखना चाहिए ।
सुबह सूर्योदय पर उठकर स्नान ध्यान करके साफ़ सुधरे कपड़े फन्ने चाहिए इसके बाद व्रत का संकल्प कर भगवान शिव को गंगा जल;,दूध, दही ,शहद , इत्र ,घी ,चन्दन ,रोली,भस्म ,गुलाल आदि से स्नान कराकर उनको जनेऊ,वस्त्रादि अर्पण कर बेलपत्र,भांग ,धतूरा ,शमी पत्र ,मदार पुष्प सहित गुलाब कमल आदि के फूल व् माला अर्पित करना चाहिए ।
शाम को प्रदोष काल में पुनः स्नान आदि कर शिव पूजन करे उन्हें मिठाई,फल, फूल अदि अर्पित कर भोग लगाकर कथा सुने फिर प्रसाद ग्रहण करे ।
दोष व्रत कथा-
एक नगर में एक ब्राह्मणी अकेले रहती थी. उसके पति का स्वर्गवास हो गया था. पति के जाने के बाद उसका कोई सहारा नहीं बचा. इसलिए सुबह-सुबह वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती. भिक्षाटन से जो कुछ मिलता था, उससे वह अपना और अपने पुत्र का पेट पालती थी. ब्राह्मणी नियमपूर्वक प्रदोष व्रत करती थी.
एक दिन ब्राह्मणी अपने पुत्र के साथ जब घर लौट रही थी तो रास्ते में उसे एक लड़का घायल अवस्था में रास्ते पर गिरा मिला. ब्राह्मणी को दया आ गई और वह उसे अपने घर ले आई. दरअसल, वह कोई मामूला लड़का नहीं था, वह विदर्भ राज्य का राजकुमार था. वह युद्ध में घायल हो गया था और शत्रुओं ने उसके पिता को बंदी बना लिया था. शत्रुओं के हाथों हारने के बाद वह यहां-वहां मारा-मारा फिर रहा था.
वह ब्राह्मणी के घर में ही रहने लगा. राजकुमार बेहद खूबसूरत और आकर्षक था. एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा और उस पर मोहित हो गई. अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई. उन्हें भी राजकुमार भा गया. कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए. उन्होंने वैसा ही किया.
ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी और उसके व्रत के प्रभाव से ही राजकुमार को गंधर्वराज की राजकुमारी अंशुमति मिली. गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुनः प्राप्त कर आनन्दपूर्वक रहने लगा. राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया. ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के माहात्म्य से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, वैसे ही शंकर भगवान अपने दूसरे भक्तों के दिन भी फेरते हैं..