वैज्ञानिकों के एक सर्वेक्षण के अनुसार स्कूल जाने वाले बच्चो का स्कूली बैग इतना भारी है जो कि बच्चो के मानसिक और शारीरिक विकास मे बाधा बन रहा है।
जब अभिकथन टीम ने कुछ स्कूल के बच्चों से बात की तो उनकी पीड़ा छलक उठी। आज के अत्याधुनिक संसाधनों के बीच भी स्कूल अपने पुस्तकों पर मिलने वाले लाभ के कारण बच्चों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे है। बच्चों की पीड़ा कुछ इस तरह है :-
1. बैग भारी होने के कारण कंधों मे दर्द होने लगता है।
2. अधिकतर पुस्तकें, कोपियांं लानी पड़ती हैंं, प्रयोग हो या हो।
3. जीने पर चढने उतरने मे कठिनाई होती है।
4. कुछ बच्चों की लंबाई भी बैग के वजन के कारण रुक जाती है।
5. कुछ बच्चों के तो हाथो पर इतना प्रभाव पड़ता है कि उनका हाथ काम करना बंद हो जाता है।
6. अधिक परेशानी वाली बात यह है कि एक ही विषय की एक से अधिक पुस्तकें होती हैं। और बच्चो को वह सारी लानी पड़ती हैं। इस कारण उनके बैग का वजन और बढ़ जाता है।
7. कई स्कूलों में तो बच्चो को क्लासवर्क और होमवर्क कॉपियां अलग अलग बनानी पड़ती हैं। और इसके कारण भी उनके बैग का वजन दुगना हो जाता है।
8. जो बच्चे स्कूलों में पहली या दूसरी मंजिल पर पढ़ते हैं, उनके लिए अपना भारी बैग लेकर ऊपर चढ़ना अत्यंत कठिन हो जाता है।
इंटरनेट और अत्याधुनिक संसाधनों के होते हुए और पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए बच्चों को कम से कम कोपियोंं से तुरन्त मुक्ति मिलनी चाहिये।
जब अभिकथन टीम ने कुछ स्कूल के बच्चों से बात की तो उनकी पीड़ा छलक उठी। आज के अत्याधुनिक संसाधनों के बीच भी स्कूल अपने पुस्तकों पर मिलने वाले लाभ के कारण बच्चों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे है। बच्चों की पीड़ा कुछ इस तरह है :-
1. बैग भारी होने के कारण कंधों मे दर्द होने लगता है।
2. अधिकतर पुस्तकें, कोपियांं लानी पड़ती हैंं, प्रयोग हो या हो।
3. जीने पर चढने उतरने मे कठिनाई होती है।
4. कुछ बच्चों की लंबाई भी बैग के वजन के कारण रुक जाती है।
5. कुछ बच्चों के तो हाथो पर इतना प्रभाव पड़ता है कि उनका हाथ काम करना बंद हो जाता है।
6. अधिक परेशानी वाली बात यह है कि एक ही विषय की एक से अधिक पुस्तकें होती हैं। और बच्चो को वह सारी लानी पड़ती हैं। इस कारण उनके बैग का वजन और बढ़ जाता है।
7. कई स्कूलों में तो बच्चो को क्लासवर्क और होमवर्क कॉपियां अलग अलग बनानी पड़ती हैं। और इसके कारण भी उनके बैग का वजन दुगना हो जाता है।
8. जो बच्चे स्कूलों में पहली या दूसरी मंजिल पर पढ़ते हैं, उनके लिए अपना भारी बैग लेकर ऊपर चढ़ना अत्यंत कठिन हो जाता है।
इंटरनेट और अत्याधुनिक संसाधनों के होते हुए और पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए बच्चों को कम से कम कोपियोंं से तुरन्त मुक्ति मिलनी चाहिये।