कल्याण सिंह भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेताओं में रहे। भारत के सबसे बड़े प्रदेश जहां से होकर दिल्ली का रास्ता जाता है यानी उत्तर प्रदेश में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी का परचम लहराया। वे उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे। आज उन्होंने लंबी बीमारी के चलते लखनऊ के पीजीआई अस्पताल अंतिम सांस ली।
राम मंदिर आंदोलन के नायकों में कल्याण सिंह की भूमिका अग्रणी रही। शिक्षा के क्षेत्र में उन्हीं के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा के सुधार हेतु नकल अध्यादेश लाया गया था।
कल्याण सिंह एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे। वे जनवरी 2015 से हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल बने।
जब भी भाजपा को राजनीतिक संकट आता था तो वे एक संकटमोचन की तरह भाजपा के लिए कार्य करते थे। उनकी छवि एक विशेष कट्टरपंथी हिंदुत्ववादी नेता की थी। बाबरी मस्जिद विध्वंस के विवाद में भी उनका नाम लिया जाता रहा है।
कल्याण सिंह का जन्म 5 जनवरी 1932 को अलीगढ़, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पिता का नाम तेजपाल सिंह लोधी और उनकी माता का नाम सीता था। उनकी पत्नी का नाम रामवती है।
कल्याण सिंह के एक बेटा और एक बेटी है।कल्य़ाण सिंह के बेटे राजवीर सिंह राजू भैया भारतीय जनता पार्टी के एटा से सांसद हैं।
कल्याण सिंह का निधन भारतीय राजनीति में ना सिर्फ भाजपा के लिए बल्कि पूरे भारत सहित उत्तर प्रदेश के लिए एक अच्छे राजनीतिक व्यक्तित्व की अपूरणीय क्षति है।
21 अक्टूबर 1997 को बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने कल्याण सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया।
कल्याण सिंह पहले से ही कांग्रेस विधायक नरेश अग्रवाल के सम्पर्क में थे और उन्होंने जल्द ही नयी पार्टी लोकतांत्रिक कांग्रेस का गठन किया और 21 विधायकों का समर्थन दिलाया।इसके लिए उन्होंने नरेश अग्रवाल को ऊर्जा विभाग का कार्यभार सौंपा।
दिसम्बर1999 में कल्याण सिंह ने पार्टी छोड़ दी और जनवरी 2004 में दोबारा भाजपा से जुड़ गए । 2004 के आम चुनावों में कल्याण सिंह ने बुलन्दशहर से भाजपा के उम्मीदवार के रूप में लोकसभा का चुनाव लड़ा।
2009 में उन्होंने एक बार फिर से भाजपा को छोड़ दिया और एटा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय सांसद चुने गये।
कल्याण सिंह ने 4 सितम्बर 2014 को राजस्थान के राज्यपाल पद की शपथ ली और उन्हें जनवरी 2015 में हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल के रूप में अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया।
जानी पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की कुछ अनसुनी कहानियां
- जिस अतरौली विधानसभा से कल्याण सिंह लगातार 8 बार जीते थे, वहीं से उनकी बहू चुनाव हारीं और जमानत भी जब्त हो गई।
- यूपी में जगदंबिका पाल सिर्फ 24 घंटे ही मुख्यमंत्री रह सके थे। उत्तर प्रदेश में 1998 में राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह को सीएम पद से बर्खास्त कर जगदंबिका पाल को सीएम पद की शपथ दिला दी थी। इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के नेतृत्व में सदन में विधायकों ने प्रदर्शन किया था।
- कल्याण सिंह दो बार सांसद रहे। 2004 में वे बुलंदशहर से सांसद रहे और दूसरी बार 2009 में एटा से सांसद बने। दिलचस्प बात यह है कि एटा में कल्याण सिंह एटा में अपनी चुनावी रैली के लिए मुलायम सिंह यादव को अपना प्रचार करने ले गए थे। राजनीतिक इतिहास की यह सबसे बड़ी घटना थी जब कल्याण और मुलायम एक साथ मंच पर हाथ पकड़े खड़े थे।
- मायावती पहली बार जून 1995 में सपा के साथ गठबंधन तोड़कर BJP और अन्य दलों के समर्थन से CM बनीं थीं। पहली बार किसी राज्य में 6-6 महीने मुख्यमंत्री बनने का फॉर्मूला सामने आया था।
- लेकिन एक ऐसा दौर भी आया, जब वे अपने ही गढ़ में कमजोर हो गए। 2012 में जब उनकी बहू प्रेमलता उनकी जनक्रांति पार्टी से अतरौली से चुनाव लड़ीं, तो उनकी जमानत भी जब्त हो गई। हालांकि, भाजपा में वापसी के बाद उसी अतरौली विधानसभा से जब उनके पोते संदीप सिंह ने चुनाव लड़ा तो वे सबसे कम उम्र के विधायक भी बने।
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