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आखिर क्यों भगवान श्री गणेश पर नहीं चढ़ानी चाहिए तुलसी

 

 हिंदू परिवारों में तुलसी की पूजा की जाती है। इसे सुख और कल्याण के तौर पर देखा जाता है। क्या आपको यह बात मालूम है कि भगवान गणेश पर तुलसी कभी नहीं चढ़ानी चाहिए। आइए जानते हैं क्या है इसका कारण। तुलसी एक समय एक लड़की हुआ करती थी जो भगवान महाविष्णु की
भक्त थी। वह भगवान विष्णु की पूजा में लीन रहती थी और एक दिन उन्हें गणेश मिले जो एक सुन्दर बगिया में खुशबूदार पेड़ों के पास ध्यान में मग्न थे। गणेश ने चमकीला पीला वस्त्र पहना था और उनके पूरे शरीर पर चन्दन का लेप लगा था। गणेश के इस रूप को देखकर तुलसी मोहित हो गयी और उनके सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया। भगवान गणेश ने कहा कि वह ब्रम्हचर्य जीवन व्यतीत कर रहे हैं वह सन्यासी हैं और शादी के बारे में तो सोच भी नहीं सकते क्योंकि इससे उनके संयमी जीवन पर असर पड़ेगा। तुलसी यह सुनकर गुस्सा हुई और गणेश के इस वक्तव्य पर क्षुब्ध होकर उन्होंने गणेश को शाप दिया कि उनकी इच्छा के बिना भी उनको शादी करनी पड़ेगी। भले ही गणेश अत्यंत परोपकारी थे पर तुलसी के इस आचरण से उन्हें गुस्सा आया। उन्होंने तुलसी को श्राप दिया कि उसकी शादी एक दानव से होगी और उसे काफी कष्ट भुगतना पड़ेगा। तुलसी को अपनी गलती का अंदाजा हो गया और उसने भगवान गणेश से विनती की ताकि वह उसे इस कठोर श्राप से मुक्त कर दें। भगवान गणेश खुश हुए और उसे माफ कर दिया। उन्होंने कहा कि श्राप के अनुसार उसकी शादी एक दानव से होगी पर एक जीवन के बाद अगले जीवन में वह पेड़ बन जायेगी। उसके बाद सब में वह अपने अद्भुत औषधीय गुण के कारण जानी जायेगी और भगवान महाविष्णु की प्रिय होगी। महाविष्णु तुलसी चढ़ाये जाने से काफी खुश होंगे और इस तरह उसकी एक उन्नत जगह होगी। गणेश का श्राप और आशीर्वाद दोनों ही सच हुए और तुलसी का विवाह शंकचूड़ नाम के दानव से हुआ। उसने पूरी जिंदगी उसके साथ गुजारी और फिर उसके बाद अगले सारे जन्म में तुसली के पेड़ का रूप लिया। गणेश के विश्वास के अनुसार महाविष्णु भगवान की पूजा के लिए यह एक उत्तम पौधे के रूप में इस्तमाल होने लगा। तुलसी के चढ़ावे के बिना भगवान विष्णु की कोई भी पूजा अधूरी रहने लगी। यह कारण है कि भगवान गणेश को तुलसी नहीं चढ़ाया जाता है। इस कहानी से यह भी पता चलता है कि कैसे तुलसी को यह पवित्र स्थान मिला। पुराणों के कहानियों से पता चलता है कि भगवान बुरे लोगों के साथ भी काफी दयालु थे। जब भी देवों द्वारा किसी दानव का वध होता था तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती थी। इस तरह इस कहानी में गणेश की दया और कृपा का बखान है।

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