जैव विविधता और किसानों के अधिकार एक दूसरे के पूरक है। पादप प्रजातियों की विविधता का एक उदाहरण लेते हैं बैंगन की अमूमन दस प्रजातियां बाजार में देखी जा सकती है। बैंगनी, सफेद, हरा ये रंग के आधार पर और गोल सम्बा वलयाकार ये विविधतायें आकार के आधार पर देखे जा सकती है। संभव है कि और भी प्रजातियां मौजूद ही जो कि देश काल परिस्थितियों के अनुसार उपजती हो मौजूदा प्रजाति में संकरण करके बनायी जाने वाली प्रजातियों को हाइब्रिड यानि संकर प्रजाति कहा जाता है। प्रजातियों को वांछित गुण धर्म वाला बनाने के लिये मेंटीनेस ब्रीडिंग की जाती है। इस प्रकार की गतिविधियां करने के लिये संगठित क्षेत्र में अतालिस अनुसंधान केन्द्र और तेईस कृषि विश्वविद्यालय मौजूद है। गन्ना बाजरा, भक्का, आलू, जूट, कपास, चावल, गेहूँ, मत्स्य, भेड, बकरी और भैंस समेत तमाम प्रजातियों के सूक्ष्म अध्ययन और अनुसंधान का काम इन्हीं संस्थानों में होता है। इनमें क्षेत्र एवं परिस्थिति विशेष की वनोपज एवं नकदी फसलों के शोध एवं अध्ययन के संस्थान भी शामिल है। यद्यपि एक दृष्टि से पूरे भारत की भूमि बहुफसली है किन्तु उपरोक्त संस्थानों में क्षेत्रीयता, बाजार एवं नीतिगत प्रावधानों के अनुसार प्रजातियों का शोध एवं अध्ययन किया जाता है। कानपुर स्थित चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश के चार कृषि विश्वविद्यालयों में प्रमुख स्थान रखता है। विश्वविद्यालय में गेंहूँ, नक्का, जौ, मटर, चना, मूंग, उड़द, अरहर, सरसों, मूंगफली और अलसी की तेरह प्रमुख प्रजातियों पर शोध एवं अध्ययन कार्य होता है। कृषि विश्वविद्यालय की शैक्षिक गतिविधियों के परिणामस्वरूप गेहूं की 37 प्रजातियां, मक्के की 2. जो चना, मूंग, मसूर, मूंगफली की छः प्रजातियां उड़द की 7 अरहर की 2. सरसों की 10 अलसी की 12 और तिल की 5 प्रजातियां विकसित की गयी है। विश्वविद्यालय में प्रोटेशन ऑफ प्लाण्ट बैराइटी एण्ड फार्मर्स राइट एक्ट के जानकार बताते है कि इन प्रजातियों की मांग होने पर बीज प्रक्षेत्र में विकसित करके बीज उपलब्ध कराते हैं। चन्द्रशेखर आजाद विश्वविद्यालय के बीज प्रक्षेत्र में बीडर के तीन तथा फाउण्डेशन के 10 फार्म है। इन प्रक्षेत्रों की उपज कृषि विज्ञान केंदो तथा विश्वविद्यालय पटल में मौजूद बीज विकय केन्द्र के माध्यम से किसानों को भी उपलब्ध कराई जाती है।
प्रजाति की पहचान :
प्रोटेक्शन ऑफ प्लाण्ट वैराइटी एण्ड फार्मर्स राइट एक्ट के अनुसार अगर कोई किसान किसी नयी प्रजाति की पहचान का दावा करता है तो उसकी मदद की जाती है। किसी प्रजाति की पहचान और उसके लिये अध्ययन की प्रक्रिया बताते हुये चन्द्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय के अध्येता संजय चौधरी कहते है कि अगर कोई पौधा बाकी फसल से अलग दिखता है तो उसे टैग कर देते हैं। ऐसा करके उसकी शिनाख्त की जाती है। फसल के साथ उसका विकास देखा जाता है उस पौधे को फसल के साथ न काटकर अलग से काटते हैं। दूसरे साल फिर उस पौधे के बीजों का प्रयोग करके देखना होता है। अगर दूसरे साल भी वही नतीजे मिलते है तो इसकी सूचना विश्वविद्यालय अथवा कृषि विज्ञान केन्द्र को देनी होती है। विश्वविद्यालय के पौधे के अलग गुणधर्म के मानकों की जांच करके उसका रजिस्ट्रेशन करते है। किसान से प्लाट मैटेरियल लेने के बाद विश्वविद्यालय के बीज प्रक्षेत्र में उसका विकास करते है । इस प्रकार किसान के प्लांट मैटेरियल का अध्ययन करके उसकी जानकारी प्रोटेक्शन ऑफ प्लॉट वैराइटी एंड फार्मर्स राइट अथॉरिटी को देते हैं। इस प्रक्रिया के पूर्ण होने पर उस प्रजाति का अधिकार किसान को आवंटित कर देती है। किसान का अधिकार होने की मियाद 15 साल की होती है। इस अधिकार के साथ किसान अपनी प्रजाति का कारोबार एवं अन्य प्रयोग कर सकता है राजय चौधरी बताते हैं कि चावल की हजारों प्रजातियां है लेकिन पूर्वी उत्तरी उत्तर प्रदेश काला नमक चावल किसान का है। इसी तरह झारखंड और उत्तराखंड से लगभग एक सौ सत्तर प्रजातियां सामने आई है। विश्वविद्यालय इन प्रजातियों की जांच दो दर्जन मानकों के आधार पर करके बीज का परीक्षण करता है। माया, बरुणा, उत्तरा पीताम्बरी बीजों की उपज 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक मिल सकती है।
ऑर्गेनिक बीजों की आवश्यकता एवं अवसर
हाल ही में माननीय प्रधानमंत्री जी के आवाहन पर आर्गेनिक फूड प्राडक्ट्स की मांग ने जोर पकड़ा है। जिस प्रकार आर्गेनिक फूड प्रोडक्ट्स की मांग बढ़ी है उसके अनुपात में ऑर्गेनिक फूड प्राडक्ट्स का बाजार नहीं बढ़ सका है। जानकार बताते है कि उसकी एक वजह बीजों की उपलब्धता ना होना भी है। बीजों की उपलब्धता न होने का एक कारण किसानों में जानकारी का अभाव भी है जिसके चलते किसान जैविक खेती की तरफ आकर्षित नहीं हो पा रहे हैं। जैविक खेती के लिए भूमि का प्रमाणीकरण बीज का प्रमाणीकरण और उत्पादों का प्रमाणीकरण तीनों ही प्रक्रियाएं जरूरी तय की गई है। मगर आम किसान के लिए यह तकनीकी पेंचीदगियां है। जिन्हें सुलझाने के लिए प्रोफेशनल्स की जरूरत है। ऐसे उत्साही युवा जिन्हें गांव खेत और किसान में रुचि हो और अपना काम करने का जुनून हो वे किसानों की इन तकनीकी पेंचीदागियों और तमाम समस्याओं के लिए वे किसानों के भी मददगार साबित हो सकते हैं और अपना व्यवसाय भी अपना सकते हैं। संभव है कि वे किसान का बाजार और सरकार से तालमेल बना सके।
लेख:राकेश विद्यार्थी
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