रिपोर्ट: राकेश मिश्र "विद्यार्थी"
पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोध केंद्र एवं अर्थशास्त्र विभाग के संयुक्त तत्वावधान में पंडित दीनदयाल उपाध्याय एवं कृषि आधारित अर्थ चिंतन विषय पर विद्युत व्याख्यान का आयोजन किया गया।
तिरुपति छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के दीनदयाल सभागार में आयोजित व्याख्यान के प्रमुख वक्ता आचार्य विजय कुमार करण ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय के कृषि आधारित अर्थ चिंतन की व्याख्या प्रस्तुत की पंडित दीनदयाल उपाध्याय के निर्मल निश्चल एवं संत चरित्र की शाब्दिक व्याख्या करते हुए उन्होंने बताया कि पंडित जी सर और असद की विवेचना बुद्धि को धारण करते थे इसलिए पंडित कहलाते थे वह दिनों के प्रति दयालु थे इसलिए दीनदयाल थे उन्होंने उपाध्याय की शाब्दिक व्याख्या करते हुए बताया कि उपाध्याय वह होता है जो सत्य और धर्म का नियम से चिंतन करें जीवन की तमाम कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने सत्य और धर्म का नियम पूर्वक पालन नहीं छोड़ा इसलिए वह सच्चे अर्थों में उपाध्याय थेे।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जीवन दर्शन के विशिष्ट देता आचार्य विजय कुमार कर्ण नालंदा विश्वविद्यालय के संस्कृत भाषा के भट्ट विद्वान हैं उन्होंने नई शिक्षा नीति के विषय में पंडित दीनदयाल उपाध्याय के शैक्षिक संप्रत्यय अर्थात एजुकेशनल टूल्स से संबंधित शोध पत्र प्रस्तुत किया इस प्रस्तुति को केंद्र सरकार ने सराहा तथा 50000 का पुरस्कार प्रदान किया है साथ ही उन्होंने बताया कि जब वह लखनऊ में थे तो दूरदर्शन के लिए उन्होंने एक कार्यक्रम बनाया जिसका नाम था श्रमेव जयते आचार्य विजय कुमार करण विभिन्न केंद्रीय विश्वविद्यालयों की विद्या परिषद के लिए नामित सदस्य भी हैं उन्होंने बताया कि दीनदयाल जी ने पूंजी के साथ-साथ श्रम के संबंध में की आवश्यकता को प्रतिपादित किया पंडित दीनदयाल उपाध्याय मानते थे एवं मानसिक श्रम के समुचित मूल्यांकन से ही पूंजी की सार्थकता सुनिश्चित हो सकती है।
टिकाऊ विकास के लिए यह जरूरी है उन्होंने कृषि की परंपरागत व्यवस्था में तकनीकी शब्दावली का प्रयोग किया परंपरागत कृषि में आधारित कहा जाता था सुधार के लिए उन्होंने विभिन्न आयामों को अपनाकर आ देव मातृका बनाने की आवश्यकता को रेखांकित किया सामाजिक उन्नयन के लिए उन्होंने रोटी कपड़ा मकान के साथ-साथ पढ़ाई और दवाई को भी जरूरी बताया इसके लिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय आत्मा वाला मन और स्वावलंबन के सूत्र से राष्ट्र एवं समाज की उन्नति पर जोर दिया करते थे।
पारंपरिक और चिंतन के साथ ही साथ पंडित जी ने विकास की समय की दृष्टि प्रस्तुत की संगठन के आधारभूत स्तंभ होने के साथ ही साथ उनका चरित्र मानवीय एवं नैतिक मूल्यों का जीवंत उदाहरण रहा वह प्रखर पत्रकार एवं भाषा के अध्यक्ष थे उनकी पत्रकारिता एवं भाषा साधना उनकी लेकर में देखी जा सकती है दीनदयाल शोध केंद्र के द्वारा पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जीवन दर्शन पर स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम संचालित किया जा रहा है।
आचार्य विनय कुमार विजय कुमार ने कहा किस महापुरुष के नाम पर फिट होता है वहां उसके विचारों पर मंथन किया जाता है पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों से सामाजिक उन्नति और सांस्कृतिक समृद्धि सुनिश्चित हो सकती है छत्रपति शाहूजी महाराज के प्रति कुलपति पंडित दीनदयाल उपाध्याय की स्मृति में स्थापित विद्यालय के दूसरे बैच के छात्र रहे उन्होंने बताया की विद्यालय की पहली बैच में 6 छात्र थे दूसरी मैच में 25 छात्र थे जिसमें से वह भी होते थे अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा कि दीनदयाल जी भगवान ना होते हुए भी भगवान से कम नहीं आज हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत को देखने और सीखने के लिए विकसित करने की जरूरत है जो अपने इतिहास और सांस्कृतिक विरासत के के प्रति के प्रति हीन भावना के साथ जी रहे हैं उन्हें भी सिखाने समझाने की जरूरत है ।
आचार्य विनय विजय कुमार कर्ण के व्याख्यान में संचित संचालिका रहे और शासन विभाग की डॉ पूजा सिंह अर्थशास्त्र विभाग की विभाग के अध्यक्ष डॉ नियति पारी तथा डॉ शरद दिक्षित विशिष्ट अतिथि के रूप में रहे कार्यक्रम का संयोजन डॉ मनीष द्विवेदी ने किया
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