लेख - विकास बाजपेई
वर्तमान में जो जानवरों की दुर्दशा है...उसका सिर्फ और सिर्फ जिम्मेदार प्राणी मात्र है। कुछ लोगों के द्वारा जीव की हत्या कर उन्हें खाने पर तर्क दिया जाता है। कि अगर इन्हें खाया नहीं जाएगा...तो यह संपूर्ण पृथ्वी पर अपना साम्राज्य कायम कर लेंगे। दरअसल वर्तमान में जन्म लेने वाले जानवर,चाहे वह भैंस का बच्चा हो या गाय का या फिर मुर्गी का।
सभी के जन्म होते नहीं, बल्कि मनुष्य दूध की पूर्ति के लिए गाय और भैंसों को गर्भवती करवाता है। और फिर दूध खुद लेता है,और दूध के हकदार को खुले आसमान में दर्द,पीड़ा और भूख को सहने के लिए छोड़ देता है। जिसमें से कुछ कत्लखाने पहुंच जाते हैं और कुछ गौशाला।
गौशाला की दुर्दशा का ज्ञान किसी से छिपा नहीं है...।बहुत सारे ऐसे गौशाला हैं जिसके अंदर गोवंश अपने बिना किए गए अपराध की सजा काट रहा है...।जिसमें ना बैठने की व्यवस्था है...। और ना ही खाने की।
जिसका परिणाम है...की गोवंश लगातार भूख और प्यास से व्याकुल होकर हर पल मरता जा रहा है। और दूसरी ओर भैंसों के बच्चों को क़त्ल खानों में असहनीय पीड़ा सहते हुए काटना पड़ रहा है़और यही हाल मुर्गी के बच्चों का है...जिनको अप्रकृतिक रूप से जन्म दिया जाता है! ताकि मनुष्य के भोग का साधन बन पाए और यही हाल बकरी के बच्चों का भी है। लेकिन मनुष्य भूल जाता है की जिसमें शरीर है... खाल है...मांस है....हड्डियां है... से उसमें दर्द है, ममता है...भावनाएं हैं, एहसास है,लेकिन खैर मनुष्य है नए नए बहाने बनाकर इनको दुनिया में लाता है,ताकि उसकी इच्छाओं की पूर्ति होती रहे।
इनकी ममता और भावनाओं का परिचय आप इस बात से लगा सकते हैं किसी भी जानवर या पक्षी की मां से।उसके सामने उसका बच्चा दूर करने का प्रयास करिए।वह अपना संपूर्ण प्रयास कर डालेगी अपने बच्चे के रक्षा के लिए...। फिर आपने गांव में भूसे से भरे हुए मृत गाय और भैंस के बच्चे को देखे होंगे जो इस बात का संकेताक है... की कोई मां नहीं चाहती कि उसका बच्चा उसकी आंखों से ओझल हो जाए। नहीं तो वह भूख...प्यास...प्राण सब त्याग देती।
और फिर आप सड़क पर घूमते गाय के बच्चे को देखिए और कत्लखाने में खड़े भैंसों के बच्चों को....।और कल्पना कीजिए कि उस बच्चे पर और उसकी मां पर क्या गुजर रही होगी? बस बीच से जानवर शब्द हटाकर देखिएगा....। क्योंकि उनकी भावनाएं भी हमारी जैसी ही होती हैं।
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