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पौराणिक मान्यता है कि प्रलय काल में भी इस मंदिर का लोप नहीं होता है। प्रलय काल में भगवान शिव इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते है और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देते है।
काशी विश्वनाथ मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और यह वाराणसी में हजारों वर्षों से स्थित है। इस मंदिर में आदि शंकराचार्य, संत एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद और गोस्वामी तुलसीदास जैसे महान संतो ने इनके दर्शन किये है। संत एकनाथ जी ने वारकरी संप्रदाय का महान ग्रंथ “श्री एकनाथी भागवत” लिख कर पूरा किया और काशी नरेश और अनेक विद्वानों की उपस्थिति में ग्रंथ को हाथी पर रख कर खूब धूमधाम से इसकी यात्रा निकाली। महाशिवरात्रि के मध्य रात्रि पहर में अन्य प्रमुख मंदिरों से भव्य शोभायात्रा ढोल, नगाड़े इत्यादि के साथ में बाबा विश्वनाथ मंदिर तक जाती है।
मान्यता
पौराणिक मान्यता है कि प्रलय काल में भी इस मंदिर का लोप नहीं होता है। प्रलय काल में भगवान शिव इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते है और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देते है। इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने की कामना से तपस्या करके आशुतोष को प्रसन्न किया था और फिर उनके शयन करने पर उनके नाभि कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए और सारे संसार की रचना की। अगस्त मुनि ने भी विश्वेश्वर की बड़ी आराधना की थी और उन्ही की अर्चना से श्री वशिष्ठ जी तीनों लोको में पूजनीय हुए तथा राजर्षि विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाए। इन्ही सब विशेषताओं के कारण ही यहां हर दिन श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती जा रही है। श्रद्धालु ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए हर दिन यहां पहुंच रहे है।
धार्मिक महत्व के अलावा यह मंदिर वास्तुकला की दृष्टि से अनुपम है। इसका भव्य प्रवेश द्वार देखने वालों की दृष्टि में मानों बस सा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि एक बार इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होल्कर के स्वप्न में भगवान शिव आए। अहिल्या बाई भगवान शिव की भक्त थी इसलिए ही उन्होने सन 1780 में इस मंदिर का निर्माण कराया।
विश्वनाथ खंड को पुराना शहर भी कहा जाता है जो दशाश्वमेध घाट और गोदौलिया के बीच मणिकर्णिका घाट के दक्षिण और पश्चिम तक नदी की उत्तर दिशा में वाराणसी के मध्य में स्थित है। बाबा विश्वनाथ मंदिर के शिखर पर स्वर्ण लेपन होने के कारण इसे स्वर्ण मंदिर भी कहा जाता है। यहां स्थापित शिव मंदिर चिकने काले पत्थर से बना हुआ है जिसे ठोस चांदी के आधार पर रखा गया है। शिवभक्त यहां संकल्प करते है और पंच तीर्थ यात्रा शुरु करने से पहले अपने मन की भावना यहां व्यक्त करते है। वाराणसी के विश्वनाथ मंदिर को प्रथम ज्योतिर्लिंग कहा जाता है।
काशी को लेकर ऐसी मान्यता है कि यहां प्राण त्यागने से ही मुक्ति मिल जाती है। भगवान भोले नाथ मरते हुए प्राणी के कान में तारक मंत्र का उपदेश फूंकते है जिससे वह जीवन और मृत्यु के आवागमन से छूट जाता है। मत्स्यपुराण का मत है कि जप, ध्यान और ज्ञान से रहित एवं दुखों से पीड़ित जन के लिए काशी ही एक मात्र स्थान है जहां सभी का कल्याण होता है। विश्वनाथ मंदिर के बारे में एक बात और प्रचलित है कि जब यहां की मूर्तियों का श्रृंगार होता है तो सभी का मुख पश्चिम की तरफ होता है।
वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर ने तमाम आक्रमण भी झेले है लेकिन इस सब के बावजूद भी भोलेनाथ की महिमा बरकरार है। मुगल शासकों ने मंदिरों को तोड़ने का बहुत प्रयास भी किया था और कुछ हद तक सफल भी हुए थे लेकिन राजा टोडरमल जैसे लोगों की वजह से इसका अस्तित्व बचा रहा। मराठों ने भी इस मंदिर के लिए बहुत योगदान दिया है जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर की विशेषता
ऐसी मान्यता है कि जब पृथ्वी का निर्माण हुआ था, तब सूर्य की पहली किरण काशी की धरती पर पडी थी। तभी से काशी ज्ञान और आध्यात्म का केंद्र बन गई।
गंगा किनारे संकरी गली में स्थित विश्वनाथ मंदिर कई मंदिरों और पीठों से घिरा हुआ है। यहाँ पर एक कुआँ है, जो मंदिर के उत्तर में स्थित है जिसे ज्ञानवापी की संज्ञा दी जाती है।
मंदिर के ऊपर एक सोने का बना छत्र है। इस छत्र को चमत्कारी माना जाता है और इसे लेकर एक मान्यता है, अगर भक्त इस छत्र के दर्शन करने के बाद कोई भी कामना करते है तो उसकी वो मनोकामना पूरी हो जाती है।
काशी विश्वनाथ मंदिर में ज्योतिर्लिंग दो भागों में है। दाहिने भाग में माँ, शक्ति के रूप में विराजमान हैं और दूसरी ओर भगवान शिव वाम रूप में विराजमान हैं। इसीलिए काशी को मुक्ति क्षेत्र कहा जाता है।
श्रृंगार के समय सारी मूर्तियां पश्चिम मुखी होती हैं। इस ज्योतिर्लिंगों में शिव और शक्ति दोनों साथ ही विराजते हैं, जो अद्भुत है। ऐसा दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता है।
बाबा विश्वनाथ के दरबार में तंत्र की दृष्टि से चार प्रमुख द्वार हैं, जिनका नाम शांति द्वार, कला द्वार, प्रतिष्ठा द्वार और निवृत्ति द्वार। इन चारों द्वारों का तंत्र में अलग ही स्थान है। पूरी दुनिया में ऐसी कोई जगह नहीं है, जहां शिवशक्ति एक साथ विराजमान हों और तंत्र द्वार भी हो।
भगवान शिव का ज्योतिलिंग गर्भग्रह में ईशान कोण में मौजूद है। इस कोण का मतलब संपूर्ण विद्या और हर कला में परिपूर्ण होना होता है।
काशी विश्वनाथ कैसे पहुँचे ?
हवाई अड्डा
काशी विश्वनाथ मंदिर के सबसे निकटतम लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है। जहाँ से, मंदिर लगभग 25 किमी दूर है। हवाई अड्डे के बाहर से कैब और बसें, निजी और सार्वजनिक सेवाएं उपलब्ध हैं, जो आपको सीधे हवाई अड्डे से मंदिर ले जा सकती हैं।
रेवले स्टेशन
वाराणसी शहर रेलवे स्टेशन अन्य रेलवे स्टेशन से जुड़ा हुआ है। वाराणसी सिटी स्टेशन मंदिर से सिर्फ 2 किमी दूर है और वाराणसी जंक्शन मंदिर से करीब 6 किमी दूर है। मुगलसराय जंक्शन स्टेशन 17 किमी दूर है, लेकिन लगभग 4 किमी दूर मदुआदीह स्टेशन भी है।
सडक द्वारा
वाराणसी के लिए उत्तर प्रदेश के सभी प्रमुख शहरों और कस्बों से लगातार निजी और सार्वजनिक बसों चलती है, साथ ही अन्य शहरों से सड़क द्वारा अच्छे से जुडा हुआ है। इसलिए मंदिर तक आप ऑटो रिक्शा या टैक्सी द्वारा पहुँच सकते है।
काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा की जानकारी
इस मंदिर में पाँच आरती होती है।
- मंगला आरती
- भोग आरती
- संध्या आरती
- श्रृंगार आरती
- शयन आरती
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