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कितना पानी साथ लेकर चलते हैं मानसून वाले बादल, फिर कैसे गरजते बरसते हैं

 


बादल तब बनते हैं जब हवा का कोई क्षेत्र ठंडा होकर भाप को द्रव में बदल देता है. वो हवा जहाँ बादल बनते हैं, जलवाष्प को संघनित (गैस से द्रव में परिवर्तन) करने के लिए पर्याप्त ठंडी होनी चाहिए. पानी हवा में मौजूद डस्ट, बर्फ या समुद्री नमक, जिन्हें संघनन नाभिक (Condensation nuclei) कहा जाता है, के साथ संघनित होता है.

उच्च स्तर (High Level) – ऊँचे बादल आसमान में कुछ किलोमीटर ऊंचाई पर बनते हैं, जिनकी सटीक ऊंचाई उस तापमान पर निर्भर करती है जहाँ वे बनते हैं. ये बादल 5 से 13 किलोमीटर की ऊंचाई पर होते हैं.

निम्न स्तर (Low Level) – नीचे बादल धरती की सतह से एक या दो किलोमीटर की ऊंचाई पर बनते हैं. हालांकि, ये बादल भूमि को छूते हुए भी बन सकते हैं जिन्हें फोग्ग कहा जाता है. 

मध्य स्तर (Middle Level) – मध्य स्तर के बादल निम्न स्तर और उच्च स्तर के बादलों के बीच में बनते हैं. इनकी ऊंचाई धरती की सतह से 2 से 7 किलोमीटर के बीच होती है.

सिरस बादल (Cirrus Clouds) – ये बादल पतले और धुंधले होते हैं, और हवा के साथ मुड़े हुए होते हैं. दिखने में ये छोटे और बिखरे हुए होते हैं जो बालों की तरह दिखाई देते हैं और काफी ऊंचाई पर होते हैं. दिन के समय में ये दूसरे बादलों की अपेक्षा अधिक सफ़ेद दिखाई देते हैं. सूरज उगते समय या छिपते समय ये सूर्यास्त के रंग की तरह दिखाई देते हैं.

कुमुलस बादल (Cumulus Clouds) – इन्हें कपासी बादल भी कहा जाता है. ये आकार में बड़े और फुले हुए होते हैं. ये बादल आसमान में किसी विशाल रुई के गोले या दूसरे आकार में दिखाई देते हैं. मध्य स्तर के बादलों की तरह ये बादलों की समानांतर धारियां भी बना सकते हैं.  

स्ट्रेटस बादल (Stratus Clouds) – इन्हें फैले हुए बादल कहा जाता है. ये बादलों की चादर बनाते हैं जो आसमान को ढक लेते हैं. इस तरह के बादल हल्की बूंदा-बांदी या थोड़ी बर्फ गिरा सकते हैं. ये बादल जमीन के ऊपर कोहरा होते हैं जो सुबह का कोहरा उठने या किसी क्षेत्र में कम ऊंचाई पर ठंडी हवा के बहने से बनते हैं.

बारिश कैसे होती है?


बादल कैसे बनते हैं यह तो आपने जान लिया. अब बात करते हैं बारिश कैसे होती है के बारे में. बादल ठंडे होने पर इसमें मौजूद भाप द्रव में बदल जाती है. इसे हम संघनन प्रक्रिया कहते हैं. लेकिन बारिश होने के लिए यह काफी नहीं है. पहले तरल बूंदे जमा होती हैं और फिर बड़ी बूंदों में बदलती हैं. जब ये बूंदे भारी हो जाती हैं तो बादल इन्हें होल्ड नहीं कर पाते हैं और ये बूंदे जमीन पर बारिश के रूप में गिरने लगती हैं. पानी के आसमान से नीचे गिरने की प्रक्रिया को वर्षण (precipitation) कहा जाता है.


यह वर्षण अनेक रूप में हो सकता है, यह बारिश (rainfall), ओले गिरना, हिमपात इत्यादि के रूप में हो सकता है. जब पानी तरल के रूप में गिरने की बजाय बर्फ के टुकड़ों के रूप में गिरता है तो उसे ओले कहते हैं. जब पानी किसी ठोस के रूप में गिरता है तो उसे हिमपात कहते हैं. इसके अलावा सर्दियों के मौसम में पानी बिल्कुल छोटी-छोटी बूंदों के रूप में बरसता है जिसे हम ओस (dew) कहते हैं.

बादल अपने साथ कितना पानी लेकर चलते हैं और इन्हें बरसाते रहते हैं. 

पानी बरसाने वाले बादल आमतौर पर काले रंग के होते हैं. पानी होने के कारण उनका रंग काला हो जाता है. जानते हैं बादलों के बारे में वो कई बातें जो सवालों के तौर पर हमारे जेहन में आती रहती हैं

हर साल मॉनसून के समय नमी लिए बादल हवाओं के चलते उत्तर की ओर बढ़ते हैं


रास्ते में मिलने वाली बूंदों को खुद से जोड़कर बादल और बड़े होते जाते हैं


मानसून के मौसम में सफेद बादलों की जगह काले बादल ज्यादा नजर आते हैं. ये वही बादल होते हैं, जो पानी बरसाते हैं. क्या आपको मालूम है कि बारिश वाले ये बादल आखिर कितना पानी लेकर चलते हैं. ये इतना ढेर सारा पानी होता है कि इसकी मात्रा सुनकर हैरान हो जाएंगे.इससे कहीं भी बाढ़ ला सकते हैं.


क्या आपने कभी काले बादलों को देखकर सोचा है कि वो अपने भीतर पानी कैसे छिपाकर रखते हैं और कैसे एकदम से इसे छोड़ देते हैं. ये पानी कभी कभी धीरे धीरे यानि रिमझिम होकर बरसता है तो कभी मूसलाधार तरीके से. इन बादलों में इतना पानी होता है कि पूरे शहर को अपने पानी से भर दें. कभी कभी ये पानी बरसाते हैं कि जिधर देखो उधर पानी भरा नजर आता है.

कैसे बनते हैं पानी के बादल

सबसे पहले पता होना चाहिए कि बादल क्या हैं? वो किसी पानी के बड़े गुब्बारे की तरह होते हैं, जिनमें बहुत सारा पानी इकट्ठा होता है. बादल कैसे अपने भीतर पानी छुपाकर रखते हैं, इस सवाल का जवाब सरल तो नहीं है. बादल किसी बाल्टी जैसे नहीं हैं.हमारे आस-पास की हवा पानी से भरी हुई है. पानी तीन रूपों में आता है: तरल (जिसे आप पीते हैं), ठोस (बर्फ) और गैस (हवा में नमी). बादल के अंदर पानी की मात्रा आपके चारों ओर हवा में पानी की मात्रा से कुछ अलग नहीं है.

बादल के अंदर का ठंडा तापमान इस नमी या वाष्प को तरल में बदल देता है. यह तरल बादलों में लाखों, अरबों या यहां तक ​​कि खरबों छोटी पानी की बूंदों के रूप में मौजूद रहता है. वैज्ञानिक इस प्रक्रिया को संक्षेपण या कंडेंसेशन कहते हैं. अब क्या पानी की बूंदों का ये बड़ा गट्ठर जमीन पर गिरेगा या नहीं यानि बारिश होगी कि नहीं, ये कई कारकों पर निर्भर करता है. लेकिन जब तक बादल के संपर्क में रहने वाली बूंदें छोटी होती हैं तो उनका वजन बहुत कम होता है, तब वो हवा के साथ तैरती रहती हैं.


बादल बूंद बहुत छोटी हैं और बहुत कम वज़नी. बादल में, वे हवा के साथ तैरती हैं या बस हवा में लटकती हैं. पृथ्वी पर गिरने के लिए, बादल की बूंदों को भारी होना पड़ता है. जब वो अन्य बूंदों के साथ मिलकर भारी हो जाती हैं तो बारिश के रूप में पृथ्वी पर आने लगती हैं. बारिश के होने में एक अहम फैक्टर पृथ्वी की आकर्षण शक्ति भी होती है. जो बादलों के पानी को अपनी ओर खींचती हैं.

एक बादल कितनी बारिश कर सकता है

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि एक वर्ग मील के क्षेत्र में गिरने वाली एक इंच बारिश 17.4 मिलियन गैलन पानी के बराबर होती है. इतना पानी लगभग 143 मिलियन पौंड वजन का होगा! यानि कई सौ हाथियों के वजन के बराबर. 

बादल कैसे फटता है?


clouds

एक जगह पर एक साथ अचानक बारिश होने को बादल फटना कहा जाता है. यह ठीक वैसे ही होता है जैसे किसी पानी से भरे गुब्बारे को फोड़ने पर पानी नीचे गिरता है. अगर किसी 10 km x 10 km साइज वाले स्थान पर 100 mm (10cm) प्रति घंटे या इससे अधिक रफ़्तार से बारिश होती है तो उसे बादल फटना कहा जाता है.


अगर देखा जाए तो पुरे भारत में एक सामान्य वर्ष के दौरान 116 cm प्रति घंटे के हिसाब से बारिश होती है. यानि की भारत के प्रत्येक क्षेत्र में पूरे वर्ष के दौरान औसतन यह वैल्यू दर्ज की जाती है. अगर किसी स्थान पर बादल फटता है तो वह साल में उस स्थान पर होने वाली बारिश का 10 से 12 प्रतिशत सिर्फ एक घंटे में बारिश कर देगा.आप अब खुद सोच सकते हैं कि जब बादल तैरते हैं तो ये हल्के फुल्के नहीं होते बल्कि अपने साथ खासा वजन लेकर चलते हैं.

कृषि मौसम वैज्ञानिक

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